संवेदनाओं का संसार ....
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सांवली सूरत मोहनी मूरत
स्वर्ण रथ पर बैठी
पश्चिम पथ पर जाती
विहगों को हर्षाती
कलरव गीत गवाती
नीड़ों में लौटाती ……
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दूर क्षितिज के संधि पट पर
नीलित नभ के सुकुमार मुख पर
नित नटखट अल्हड बाला सी
लाल गुलाल मल कर छिप जाती
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और कहीं दीपों के कोमल उर में
मुस्कानों के पीत पुष्प खिलाती
वन उपवन धरा के छोर को
अपने श्यामल आँचल में छुपाती
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कहो प्रिये !!!
फिर कब आओगी ???
कजरारी आँखों से…
मंद मंद मुस्काती …
थके पथिक को लुभाती ..
आलौकिक मंगल गीत गाती …
श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ उत्तराँचल भारत २०१०
हे प्रभु !!जीवन के सुहाने दिवस के बाद सांझ भी उतनी ही सुन्दर सलोनी हो !!!
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